बटुक भैरव प्रसन्न होकर सदा साधक के साथ रहते हैं और उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं अकाल मौत से बचाते हैं। ऐसे साधक को कभी धन की कमी नहीं रहती और वह सुखपूर्वक वैभवयुक्त जीवन- यापन करता है।
जो साधक बटुक भैरव की निरंतर साधना करता है तो भैरव बींब रूप में उसे दर्शन देकर उसे कुछ सिद्धियां प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से साधक लोगों का भला करता है।
भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है।
श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं। स्कंद पुराण के अवंति खंड के अंतर्गत उज्जैन में अष्ट महाभैरव का उल्लेख मिलता है।
भैरव जयंती पर अष्ट महाभैरव की यात्रा तथा दर्शन पूजन से मनोवांछित फल की प्राप्ति तथा भय से मुक्ति मिलती है। भैरव तंत्र का कथन है कि जो भय से मुक्ति दिलाए वह भैरव है।भय स्वयं तामस-भाव है। तम और अज्ञान का प्रतीक है यह भाव। जो विवेकपूर्ण है वह जानता है कि समस्त पदार्थ और शरीर पूरी तरह नाशवान है।
आत्मा के अमरत्व को समझ कर वह प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय बना रहता है। जहाँ विवेक तथा धैर्य का प्रकाश है वहाँ भय का प्रवेश हो ही नहीं सकता। वैसे भय केवल तामस-भाव ही नहीं, वह अपवित्र भी होता है।
इसीलिये भय के देवता महाभैरव को यज्ञ में कोई भाग नहीं दिया जाता। कुत्ता उनका वाहन है। क्षेत्रपाल के रूप में उन्हें जब उनका भाग देना होता है तो यज्ञीय स्थान से दूर जाकर वह भाग उनको अर्पित किया जाता है, और उस भाग को देने के बाद यजमान स्नान करने के उपरांत ही पुन: यज्ञस्थल में प्रवेश कर सकता है।
साधना का मंत्र
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा
उक्त मंत्र की प्रतिदिन 11 माला 21 मंगल तक जप करें। मंत्र साधना के बाद अपराध-क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें। भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ भी करना चाहिए।
साधना यंत्र
श्री बटुक भैरव का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरवजी के चित्र के समीप रखें। दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें। चित्र या यंत्र के सामने हाल, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं।
साधना का समय : इस साधना को किसी भी मंगलवार या मंगल विशेष अष्टमी के दिन करना चाहिए शाम 7 से 10 बजे के बीच।
साधना की चेतावनी : साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें। सहवास से दूर रहें। वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें। यह साधना किसी गुरु से अच्छे से जानकर ही करें।
साधना नियम व सावधानी
1. यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें।
2. यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है।
3. रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है।
4. भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें।
5. भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए।
6. साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें।
7. हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन-साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें।
8. भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद उसी स्थान पर ग्रहण करना चाहिए।
9. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है, जैसे रविवार को चावल-दूध की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा,
गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगाया जाता है।
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